तरकुलहा देवी मंदिर
यह मंदिर अपनी दो विशेषताओ के कारण काफी प्रसिद्ध हैं।
इस इलाके में जंगल हुआ करता था जहां जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी। बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे, इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसका सर काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते ।
अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी, 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 7 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। इसके बाद बंधू सिंह ने स्वयं देवी माँ का ध्यान करते हुए मन्नत मांगी कि माँ उन्हें जाने दें। कहते हैं कि बंधू सींह की प्रार्थना देवी ने सुन ली और सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए। अमर शहीद बंधू सिंह को सम्मानित करने के लिए यहाँ एक स्मारक भी बना हैं।
यह देश का इकलौता मंदिर है जहाँ प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं। बंधू सिंह ने अंग्रेजो के सिर चढ़ा के जो बली कि परम्परा शुरू करी थी वो आज भी यहाँ चालु हैं। अब यहाँ पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बाटा जाता हैं साथ में बाटी भी दी जाती हैं।
फोटो गैलरी
कैसे पहुंचें:
हवाईजहाज द्वारा
तरकुलहा देवी के मंदिर जाने के लिये नजदीक एयरपोर्ट गोरखपुर एयरपोर्ट है।
ट्रेन द्वारा
चौरीचौरा, देवरिया या गोरखपुर रेलवे स्टेशन से तरकुलहा देवी के मंदिर जा सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा
देवरिया या गोरखपुर रेलवे स्टेशन से बस ,टैक्सी द्वारा तरकुलहा देवी के मंदिर जा सकते है।