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प्रतिष्ठित / प्रख्यात व्यक्तित्व

गोरखपुर जनपद को नई उंचाईयों पर लाने  व  विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सर्वश्रेष्ठ  सेवाओं के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा  एवं  ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित  व्यक्तित्वों  ने गोरखपुर जनपद का नाम रोशन किया है । आज भी  वे  उनके नाम पर स्थित संस्थानों के साथ अमर हैं ।

बाबा राघवदास

बाबा राघवदास का जन्म 12 दिसम्बर 1896 को पुणे (महाराष्ट्र) में एक संभ्रान्त ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री शेशप्पा और माता का नाम श्रीमती गीता था।   प्लेग जैसी महामारी  में हरा-भरा परिवार  काल में समा गया जिसके कारण  बचपन में ही अपने परिवार से अलग होना पड़ा । 1913 में 17 वर्ष की अवस्था में राघवेन्द्र एक सिद्ध गुरु की खोज में  प्रयाग, काशी आदि तीर्थों में विचरण करते हुए गाजीपुर (उत्तरप्रदेश का एक जनपद) पहुँचे जहाँ उनकी भेंट मौनीबाबा नामक एक संत से हुई। मौनीबाबा ने राघवेन्द को हिन्दी सिखाई। गाजीपुर में कुछ समय बिताने के बाद राघवेन्द बरहज (देवरिया जनपद की एक तहसील) पहुँचे और वहाँ वे एक प्रसिद्ध संत योगीराज अनन्त महाप्रभु से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए।१९२१ में गाँधीजी से मिलने के बाद बाबा राघवदास स्वतंत्र भारत का सपना साकार करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए तथा साथ ही साथ जनसेवा भी करते रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस कर्मयोगी को कई बार जेल  भी जाना पड़ा । 1931 में गाँधीजी के नमक सत्याग्रह को सफल बनाने के लिए राघवबाबा ने क्षेत्र में कई स्थानों पर जनसभाएँ की और जनता को सचेत किया। बाबा राघवदास ने अपना सारा जीवन जनता की सेवा में समर्पित कर दिया।  सन 1951 में इन्होने गोरखपुर में कुष्ठ सेवाश्रम की स्थापना करायी | सन 1947 से 1957 के बीच उन्होंने खुद को ‘ग्रामोद्योग सेटअप’, ‘खादी स्पष्टीकरण’ , गीता-रामायण अन्वेषण, हरिजन उत्थान , बुद्ध तीर्थयात्रियों की उन्नति , कुष्ठ सेवा, गाय भक्ति आदि में समर्पित कर दिया । उन्होंने बिनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए ‘भू-दान’ आंदोलन में भी सक्रियता से भाग लिया। 15 जनवरी 1958 को  अपनों से विदा लेकर ब्रह्म में विलीन हो गया। बाद में इनकी स्मृति में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई|

पं. राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मिल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 11 जून, 1897 शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह एक महान देशभक्त क्रांतिकारी होने के साथ एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे और इनकी कविताये हिंदी और उर्दू में लिखी मिलती हैं । राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे । वह ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल थे। राम प्रसाद को सोमवार 19 दिसम्बर 1927 (पौष कृष्ण एकादशी विक्रमी सम्वत् १९८४) को प्रात:काल 6 बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी | फाँसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का नाश चाहता हूँ’|
बिस्मिल के बलिदान का समाचार सुनकर बहुत बड़ी संख्या में जनता जेल के फाटक पर एकत्र हो गयी। जेल का मुख्य द्वार बन्द ही रक्खा गया और फाँसीघर के सामने वाली दीवार को तोड़कर बिस्मिल का शव उनके परिजनों को सौंप दिया गया। शव को डेढ़ लाख लोगों ने जुलूस निकाल कर पूरे शहर में घुमाते हुए राप्ती नदी के किनारे राजघाट पर उसका अन्तिम संस्कार कर दिया|

बाबू बंधु सिंह

बंधू सिंह का जन्म 1 मई 1833 को बाबू शिव प्रसाद सिंह के परिवार में चौरीचौरा के डुमरी बाबू गांव में  हुआ था। पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर गोरखपुर के  1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाई । बाबू बंधु सिंह गुरिल्ला युद्ध के जानकार थे डुमरी खास( डुमरी कला) के बंधु सिंह ने विद्रोह में अंग्रेजो के विरुद्ध मोर्चा लिया था जिससे नाराज होकर उनकी सारी संपत्ति को अंग्रेजो ने जब्त कर लिया था। | वह तरकुलहा देवी के भक्त थे उन्हें आखिर में अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था और 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से उन्हें फांसी दी गयी  थी |

हनुमान प्रसाद पोद्दार

हनमान प्रसाद पोद्दार का जन्म शनिवार, 17 दिसंबर, 1890 को राजस्थान के रतनगढ़ में हुआ था । हनुमान प्रसाद पोद्दार को लोग प्यार से भाईजी कहते है | गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार है। अंग्रेजों के जमाने में गोरखपुर में उनकी धर्म व साहित्य सेवा तथा उनकी लोकप्रियता को देखते हुए तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर पेडले ने उन्हें `राय साहब’ की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन भाई जी ने विनम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद अंग्रेज कमिश्नर होबर्ट ने `राय बहादुर’ की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा लेकिन भाई जी ने इस प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया। देश की स्वाधीनता के बाद डॉ, संपूर्णानंद, कन्हैयालाल मुंशी और अन्य लोगों के परामर्श से तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने हनुमान प्रसाद पोद्दार को `भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा लेकिन हनुमान प्रसाद पोद्दार ने इसमें भी कोई रुचि नहीं दिखाई।

महंत दिग्विजय नाथ

महंत दिग्विजय नाथ का जन्म राजस्थान के उदयपुर में 1849 में राजपूत ठाकुर परिवार में हुआ था (जन्म – नानू सिंह ) भारत में गोरखनाथ मठ के मठाधीश अर्थात प्रमुख पुजारी थे। वह एक हिंदू राष्ट्रवादी कार्यकर्ता भी थे और हिंदू महासभा के एक राजनेता थे, । 1949 में राम जन्मभूमि आंदोलन में महंत नाथ ने प्रमुख भूमिका निभाई जो बाबरी मस्जिद के अंदर राम मूर्तियों को रखने के पश्चात् समाप्त हुआ | 1967 में महंत दिग्विजय नाथ को हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर के सांसद के रूप में चुना गया |

फ़िराक़ गोरखपुरी

उर्दू के मशहूर शायर फ़िराक़ गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त, वर्ष 1896 ई. में गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। फ़िराक़ का पूरा नाम ‘रघुपति सहाय फ़िराक़’ था, किंतु अपनी शायरी में वे अपना उपनाम ‘फ़िराक़’ लिखते थे। उनके पिता का नाम मुंशी गोरख प्रसाद था, जो पेशे से वकील थे। मुंशी गोरख प्रसाद भले ही वकील थे, किंतु शायरी में भी उनका बहुत नाम था। इस प्रकार यह कह सकते हैं कि शायरी फ़िराक़ साहब को विरासत में मिली थी। फ़िराक़ गोरखपुरी ने ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने बी. ए. में पूरे प्रदेश में चौथा स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद वे डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त हुए। कुछ समय उन्होंने सरकारी नौकरी की लेकिन फिर नौकरी छोड़कर महात्मा गाँधी के आन्दोलन में कूद पड़े , उन्हें जेल भी जाना पड़ा था, इसके बाद में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर हो गए। उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ और ‘सोवियत लैण्ड नेहरू अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था। वर्ष 1970 में उन्हें ‘साहित्य अकादमी’ का सदस्य भी मनोनीत किया गया था। 3 मार्च,1982 में फ़िराक़ गोरखपुरी का देहांत हो गया।

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी से लगभग चार मील दूर, लमही नाम के गाँव में 31 जुलाई, 1880 को हुआ। प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। गोरखपुर प्रेमचन्द की कर्मभूमि रही है वे सन 1916 से 1921 के बीच गोरखपुर में शिक्षक और छात्रावास अधीक्षक के रूप में कार्यरत थे | गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे,  वहाँ “प्रेमचंद साहित्य संस्थान” की स्थापना की गई है।

डॉ. एस.एन.एम. त्रिपाठी

डा. सुरति नारायण मणि त्रिपाठी का जन्म 1 जनवरी-1902 में देवरिया जनपद अंतर्गत बरपार गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका स्वर्गवास 21 नवम्बर-1988 को हुआ। एमए व एलएलबी करने के बाद वह पीसीएस की परीक्षा में सफल होकर वर्ष-1926 में डिप्टी कलक्टर के पद पर तैनात हुए। स्वतंत्रता के पश्चात वह गोरखपुर, इलाहाबाद व लखनऊ के जिलाधिकारी रहे। सेवानिवृत्त होने पर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य तथा कुलपति वाराणसी संस्कृति विश्वविद्यालय के पदों को भी संभाला। डा. सुरति की विशेष उपलब्धि गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना थी।

वीर बहादुर सिंह

वीर बहादुर सिंह ,   उत्तर प्रदेश के पूर्व  मुख्या मंत्री और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री संचार, व्यापक रूप से आधुनिक गोरखपुर के वास्तुकार के रूप में याद किये जाते हैं ।  शहर गोरखपुर को बी श्रेणी  और नगर निगम का उन्नयन , गोरखपुर विकास प्राधिकरण का निर्माण, आवासीय कालोनियों का निर्माण, स्पोर्ट्स कॉलेज की स्थापना, महिला आई .टी. आई. और नवोदय विद्यालय, महत्वाकांक्षी राम गर्द परियोजना , मनोरंजन पार्क और सडकों का चौड़ीकरण आदि   अनेक  कार्य उनके  कार्यकाल के समय  गोरखपुर में  हुए  विकास कार्यो की श्रृंखला के लिए गोरखपुर उनका ऋणी रहेगा ।

सुरजीत सिंह मजीठिया

सुरजीत सिंह मजीठिया केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। वह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में रक्षा राज्यमंत्री के पद पर थे। 1952 से लेकर 1964 तक सुरजीत सिंह इस पद की जिम्मेदारी संभालते रहे। सुरजीत सिंह के पिता सुंदर सिंह मजीठिया शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के पहले अध्यक्ष थे। सुंदर सिंह ने ही विश्व प्रसिद्ध खालसा कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब 50 साल के बाद पोती हरसिमरत कौर ने उनकी राजनीति में एक कदम आगे बढ़ाया है।

डॉ विद्या निवास मिश्र

संस्कृत के  विद्वान, जाने-माने भाषाविद्, हिन्दी साहित्यकार और नवभारत टाइम्स सफल सम्पादक  थे। उन्हें सन १९९९ में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।  पं. विद्यानिवास मिश्र का जन्म 28 जनवरी 1925 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के पकडडीहा गाँव में हुआ था। वाराणसी और गोरखपुर में शिक्षा प्राप्त करने वाले श्री मिश्र ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से वर्ष 1960-61 में पाणिनीय की व्याकरण पर डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की थी।
प्रो॰ मिश्र जी हिन्दी के मूर्धन्य् साहित्येकार थे। आपकी विद्वता से हिन्दी् जगत का कोना-कोना परिचित है। उन्होंने अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में भी शोध कार्य किया था तथा वर्ष 1967-68 में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अध्येता रहे थे। म.प्र. में भी सेवारत रहे कुछ समय के लिए। मध्यप्रदेश में सूचना विभाग में कार्यरत रहने के बाद वे अध्यापन के क्षेत्र में आ गए। वे 1968 से 1977 तक वाराणसी के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में अध्यापक रहे। कुछ वर्ष बाद वे इसी विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। उनकी उपलब्धियों की लंबी शृंखला है। लेकिन वे हमेशा अपनी कोमल भावाभिव्यक्ति के कारण सराहे गए हैं। उनके ललित निबंधों की महक साहित्य- जगत में सदैव बनी रहेगी।
स्यर थे।

पं. दशरथ प्रसाद द्विवेदी

दशरथ प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1891 में गोरखपुर जिले के डोहरियाे गांव में हुआ था। द्विवेदी जी  अपनी प्रारंभिक शिक्षा कायस्थ पाठशाला और उच्च शिक्षा मूईर इंटर कॉलेज इलाहाबाद से ली थी। दशरथ जी थानेदारी की नौकरी छोड़कर पत्रकारिता के क्षेत्र में आए थे। गणेश शंकर विद्यार्थी के ‘प्रताप‘ में वे सहायक भी रहे थे। वहीं उन्होंने ‘स्वदेशी’ भाव का पाठ पढ़ा था, जिसके लिए वे जीवन-पर्यंत समर्पण भाव से कार्य करते रहे। उनके पत्र ‘स्वदेश‘ के प्रथम पृष्ठ पर ही स्वराष्ट्र धर्म की भावना को जागृत करने वाली निम्नलिखित पंक्तियां लिखी रहती थीं-
‘‘जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह ह्दय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।‘‘

दलेर मेहँदी

लोकप्रिय पंजाबी गायक जिन्होंने गोरखपुर जिले से अपने कैरियर की शुरुआत की ।

श्रीमती जानकी देवी

श्रीमती जानकी देवी, सामाजिक कार्यकरता, गोरखपुर के पिपराईच ब्लाक की निवासी,  जिनके प्रयास से कई  गाँव के लोगो की ज़िन्दगी बदल  गयी ।   गोरखपुर के जिलाधिकारी द्वारा इन्हें उनके प्रयास के लिए सम्मानित  भी किया गया।

ज़फर गोरखपुरी

जफर गोरखपुरी ऐसे खु़शनसीब शायर हैं, जिन्होंने फिराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, मजाज लखनवी और जिगर मुरादाबादी जैसे शायरों से अपने कलाम के लिए दाद वसूल की है। उनके पांच संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और उन्होंने हिंदी फिल्मों में नग्मे लिखकर भी शोहरत बटोरी है। जन्म : 5 मई 1935

सैयद मोदी

बैडमिंटन में अपने अद्वितीय योगदान की बदौलत उन्होंने गोरखपुर की पताका अंतरराष्ट्रीय फलक पर फहरायी। महज आठ वर्ष की उम्र में सैयद मोदी ने शटल-कॉक से दोस्ती कर ली। इस दोस्ती ने उन्हें बैडमिंटन का बादशाह बना दिया। अर्जुन अवार्ड, जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल,  कामनवेल्थ चैंपियन, लक्ष्मण पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कार व सम्मान अपनी झोली में डाले। स्वर्गीय सैयद हसन व कमरुन निशा के सबसे छोटे बेटे सैयद मोदी का जन्म 31 दिसंबर 1962 को सरदार नगर में हुआ था।  केडी सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ से निकलते समय 28 जुलाई 1988 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

नरेन्द्र हीरवानी

नरेन्द्र हीरवानी  का  जन्म 18 अक्टूबर 1968  गोरखपुर में हुआ था , वह एक लेग स्पिन गेंदबाज थे जो भारत के लिए खेले। वह मुख्य रूप से अपनी पहले  टेस्ट मैच में सफलता के लिए याद किये जाते है 1990 में द ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ एक टेस्ट मैच के दौरान, हिराविनी ने बिना ब्रेक के 59 ओवरों में बालिंग करके टेस्ट रिकार्ड (वर्ल्ड रिकॉर्ड) को अपने नाम रखा  ।

प्रेम माया

बच्चन सोनिर (जन्म 14 जुलाई, 1 9 61) उत्तर पूर्वी रेलवे मुख्यालय गोरखपुर के सहायक खेल अधिकारी के रूप में सेवा कर रही  हैं । वह भारत की महिला हॉकी टीम की  सदस्य थी  जिन्होंने 1982 में नई दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। वह भारतीय रेल महिला हॉकी टीम के कोच के रूप में भी कार्य करती है जिसने कई बार महिला राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप जीती है। वह राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम का कप्तान भी थीं। 1985 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला |

स्व. श्री जनार्दन सिंह

भारत भीम के नाम से प्रसिद्ध , राष्ट्रीय पहलवान श्री जनार्दन सिंह  ने गोरखपुर ही नहीं भट का नाम रोशन किया ।

पन्ने लाल यादव

भारत के जाने मने पहलवान  जिन्होंने भारत और विदेशों में  भारत का प्रतिनिधित्व किया और यश भारती पुरुस्कार  प्राप्त किया।

राम आश्रय यादव , चन्द्र विजय सिंह, जनार्दन  यादव

यह तीनो पहलवान भारतीय रेलवे टीम के साथ साथ  पहलवानी में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं . सभी यश बरती पुरुस्कार विजेता हैं ।